**आदिवासी बाहर तो मुस्लिम अंदर क्यों? ‘शरीयत पर नहीं करेंगे समझौता’ – जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के विरोध में और गहराई से**
*नई दिल्ली, तारीख: वर्तमान में चर्चा का केंद्र बने हुए एकता साधारिता कानून (UCC) के मुद्दे पर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने अपने विरोध का आयोजन किया है, जिसमें उन्होंने आदिवासी और मुस्लिम समुदायों के बीच भिन्न नियमावली की मांग की है। इस विरोध के बारे में गहराई से जानकारी देने वाले सूत्रों के मुताबिक, यह विवाद एक नए चरण की चर्चा को उत्तेजित कर रहा है और विभिन्न समूहों के बीच सामंजस्य को लेकर वार्ता को बढ़ावा दे रहा है।*
**आदिवासी समुदायों की मांग:**
जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के विरोध का पहला तर्क है कि आदिवासी समुदायों को अलग नियमावली का अधिकार होना चाहिए। इसमें उनका तर्क है कि आदिवासी समुदायों की विशेषता और उनकी सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपने संगठन के नियमों को बनाए रखने का अधिकार होना चाहिए। इससे सामाजिक समृद्धि और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि होगी, यह उनका मानना है।
**मुस्लिम समुदायों का विरोध:**
विरोध की दूसरी ओर, मुस्लिम समुदायों के बीच शरीयत के प्रति निर्देशों के खिलाफ जमीयत-उलेमा-ए-हिंद का विरोध है। उनका तर्क है कि शरीयत पर समझौता करना उचित नहीं है और वे इसे नहीं करेंगे। इससे आपसी समझ और एकता को बढ़ावा मिलेगा और मुस्लिम समुदाय को अपने धार्मिक अधिकारों का उचित समर्थन मिलेगा, ऐसा उनका मानना है।
**समर्थन और आपसी समझ की बातें:**
इस विरोध की लकीर ने एक नए सोचने के तरीके को प्रेरित किया है और इस विषय पर विभिन्न समूहों के बीच वार्ता को बढ़ावा देने का काम किया है। आदिवासी और मुस्लिम समुदायों के बीच सभी सांघीय ताकतों को मिलकर इस मुद्दे पर सोचने का सामर्थ्य मिल सकता है और इससे सामाजिक समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ सकता है |
आदिवासी बाहर तो मुस्लिम अंदर क्यों? शरीयत पर नहीं करेंगे समझौता…’, UCC पर जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने खींच दी विरोध की लकीर
-