दैनिक जीवन में करें, तुलसी उपयोग रहे निरोग
लेखिका/ योगाचार्य /अध्यात्म गुरु डॉ शशिकला यादव तुलसी एक बहुत उपयोगी वनस्पति है। भारतीय धर्म -संस्कृति में तुलसी अतिपवित्र और महत्वपूर्ण है। प्रत्येक हिंदू के घर -आंगन में तुलसी क्यारे का होना घर की शोभा, घर के संस्कार, पवित्रता तथा धार्मिकता का अनिवार्य प्रतीक है। मात्र भारत में ही नहीं वरन विश्व के कई अन्य देशों में भी तुलसी को पूजनीय तथा शुभ माना गया है। ग्रीस में ईस्टर्न चर्च नामक संप्रदाय में भी तुलसी की पूजा होती थी और सेंट बेसिल -जयंती के दिन नूतन वर्ष भाग्यशाली हो। इस भावना से देवल में चढ़ाई गई तुलसी के प्रसाद को स्त्रियां घर में ले जाती थी। समस्त वृक्षों -वनस्पतियों में सर्वाधिक धार्मिक, आध्यात्मिक ,आरोग्य लक्ष्मी एवं शोभा की दृष्टि से तुलसी को मानव जीवन में महत्वपूर्ण पवित्र तथा श्रद्धेय स्थान मिला और। यह् भगवान नारायण को अति प्रिय है। बृंदा, विष्णुप्रिया, माधवी आदि भी इसके नाम है। धार्मिक आध्यात्मिक महत्व तो इसकी है ही ,आरोग्य प्रदान करने में भी इसका विशेष स्थान है। इसीलिए यह आरोग्य लक्ष्मी भी कहलाती है।
प्रदूषित वायु के शुद्धिकरण में तुलसी का विलक्षण योगदान है। यदि तुलसीवन के साथ प्राकृतिक चिकित्सक की। कुछ पद्धतियां जोड़ दी जाए तो प्राणघातक और दु:साध्य रोगों को भी निर्मल करने में सफलता मिल सकती है।
तुलसी शारीरिक व्याधियों को तो दूर करती है। साथ ही मनुष्य के आंतरिक भावों और विचारों पर भी कल्याणकारी प्रभाव डालती है। तुलसी के पौधे में मच्छरों को दूर भगाने का गुण है और इसकी पत्तियां खाने से मलेरिया के दूषित तत्वो का मूलतः नाश होता है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से सरल प्रयोग से ज्वर दूर किया जा सकता है।
निसरगोपचारको का कहना है कि तुलसी की पत्तियों को दही या छाछ के साथ सेवन करने से वजन कम होता है। शरीर की चर्बी कम होती है अतः शरीर सुडौल बनता है। साथ ही थकान मिटती है। दिनभर स्फूर्ति बनी रहती और तथा रक्त कणों में वृद्धि होती है।
ब्लडप्रेशर के नियमन, पाचन तंत्र के नियमन तथा रक्त कणों की वृद्धि के अतिरिक्त मानसिक रोगों में भी तुलसी के प्रयोग से असाध्य सफल परिणाम प्राप्त हुए हैं।
अथर्ववेद में आता है यदि त्वचा, मांस तथा अस्थि में महारोग प्रविष्ट हो गया हो तो उसे श्यामा तुलसी नष्ट कर देती है। तुलसी के दो भेद होते हैं। 1- हरे पत्ते वाली और 2- श्याम काले पत्ते वाली श्यामा तुलसी सौंदर्य वर्धक है। इसके सेवन से त्वचा के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और त्वचा पुनः मूल रूप धारण कर लेती है। तुलसी त्वचा के लिए अद्भुत रूप से गुणकारी है।
तुलसी हिचकी , खासी, विषदोष, वात ,कफ और मुंह की दुर्गंध को नष्ट करती है।
स्कंद पुराण एवं पदपुराण के उत्तराखंड में आता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वह घर तीर्थ के समान है। वहां व्याधि रूपी यमदूत प्रवेश ही नहीं कर सकते। तुलसी किडनी के कार्य शक्ति में वृद्धि करती है। तुलसी के रस में शहद मिलाकर देने से एक केस में किडनी की पथरी छह माह के निरंतर उपचार से बाहर निकल गई थी।
इंण्ट्राटेकिप्पल कैंसर से पीड़ित एक रोगी पर ऑपरेशन तथा अन्य अनेक उपचार करने के बाद अंत में आशा छोड़कर डॉक्टर ने घोषित किया कि रोगी का यकृत खराब हो रहा है। यक्ष्मा में भी वृद्धि हो रही है। अब यह रोग लाइलाज है। उसी समय एक व्यक्ति ने उक्त विधान के विरुद्ध चुनौती दी। रोगी को पांच सप्ताह तक केवल तुलसी का सेवन कराया। फल स्वरुप वह इतना स्वस्थ हो गया कि एक मील तक पैदल चल सकता था।
ह्रदय रोग से पीड़ित कई रोगियों के हाई ब्लडप्रेशर तुलसी के उपचार से सामान्य हुए हैं। ह्रदय की दुर्बलता कम हो गई है और रक्त में चर्बी की वृद्धि रुकी है जिन्हें ऊंचाई वाले स्थानों पर जाने की मनाही थी। ऐसे अनेक रोगी तुलसी के नियमित सेवन के बाद आनंद पूर्वक ऊंचाई वाले स्थानों पर जाने में समर्थ हुए हैं।
एक लड़का बचपन से ही मंदबुद्धि था। 16 वर्षों तक उसके अनेक उपचार हुए किंतु उसकी बौद्धिक मंदता दूर नहीं हुई। तुलसी के नियमित सेवन से दो ही महीनों के भीतर उसमें बुद्धिमत्ता के लक्षण दिखाई पड़े समय बीतने पर वह कुछ और अधिक बुद्धिशाली हो गया।
बच्चों को तुलसी पत्र देने के साथ सूर्य नमस्कार करवाने और सूर्य को अर्घ दिलवाने के प्रयोग से बुद्धि में विलक्षणता आती है।
सफेद दाग और कुछ हटके अनेक रोगियों को तुलसी के उपचार से अद्भुत लाभ हुआ है।
प्रतिदिन प्रातः काल खाली पेट पानी के साथ तुलसी की 5 – 7 पत्तियों का सेवन करने से बलतेज और स्मरण शक्ति बढ़ती है। तुलसी के काढ़े में थोड़ी शक्कर मिलाकर पीने से स्फूर्ति आती है और थकावट दूर हो जाती है। जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। इसके रस में नमक मिलाकर उसकी बूंदें नाक में नीचोड़ने से मूर्छा दूर होती है। हिचकियां भी शांत हो जाती हैं।
तुलसी ब्लड कोलेस्ट्रॉल बहुत तेजी के साथ सामान्य बना देती है। तुलसी के नित्य सेवन से एसिडिटी दूर होती है। पेचिश, कोलाइटिस तथा आदि मिट जाते हैं। स्नायु का दर्द, जुकाम, सर्दी में वृद्धि और सिरदर्द आदि में तुलसी गुणकारी है। इसका रस, अदरक का रस एवं शहद संभाग में मिश्रित करके बच्चों को चटाने से उनके कुछ रोगों विशेषकर सर्दी, दस्त, उल्टी और कब्ज में लाभ होता है। ह्रदय रोग और उसकी अनुषंगिक निर्मलता तथा बीमारी में तुलसी के उपयोग से आश्चर्यजनक सुधार होता है।
वजन बढ़ाना या घटाना हो तो तुलसी का सेवन करें। इससे शरीर स्वस्थ और सुडौल बनता है। मंदाग्नि, कब्जियत, गैस आदि रोगों के लिए तुलसी रामबाण औषधि सिद्ध हुई है।
तुलसी की क्यारी के पास प्राणायाम करने से सौंदर्य स्वास्थ और तेज की अति उत्तम वृद्धि होती है। तुलसी की सूखी पत्तियों को पीसकर उसके चूर्ण को पाउडर की तरह चेहरे पर रगड़ने से चेहरे की कांति बढ़ती है और चेहरा सुंदर दिखता है। मुहांसों के लिए भी तुलसी अत्यंत उपयोगी है। तांबे के बर्तन में नींबू के रस को 24 घंटे तक रख छोड़िए फिर उसमें इतनी ही मात्रा में काली तुलसी का रस तथा काली कसौड़ी का रस मिलाएं। इस मिश्रण को धूप में सुखाकर गाढ़ा कीजिए। इस लेप को चेहरे पर लगाने से धीरे-धीरे चेहरा स्वच्छ चमकदार सुंदर तेजस्वी बनेगा तथा कांति बढ़ेगी।
काली मिर्च, तुलसी और गुड़ का काढ़ा बनाकर उसमें नींबू का रस मिलाकर दिन में दो -दो या तीन- तीन घंटे के अंतर से गर्म – गर्म पिये फिर कंबल ओढ़ कर सो जाएं। यह काढ़ा मलेरिया को दूर करता है ।
श्लेष्मक ज्वर (इनफ्लुएंजा) के रोगी को तुलसी का 20 ग्राम रस, अदरक का 40 ग्राम रस तथा शहद मिला कर दे।
तुलसी की जड़ कमर में बांधने से गर्भवती स्त्रियों को लाभ होता है। प्रसव वेदना कम होती है और प्रसूति भी सरलता से हो जाती है।
तुलसी की पत्तियों का रस 20 ग्राम चावल के मांड के साथ सेवन करने से तथा दूध भात या घी -भात का पथ्य लेने से प्रदर रोग दूर होता है। तुलसी की पत्तियों को नींबू के रस में पीसकर लगाने से दाद खाज मिट जाती है।
तुलसी का पाउडर तथा सूखे आंवले का पाउडर पानी में भिगोकर रख दीजिए। प्रातः काल छानकर उस पानी से सिर धोने से सफेद बाल काले हो जाते हैं तथा बालों का झड़ना रूक जाता है।
तुलसी और अदरक का रस सफेद तुलसी और अदरक का रस शहद के साथ लेने से उलटी में लाभ होता है। पेट में दर्द होने पर तुलसी की ताजी पत्तियों का 10 ग्राम रस पीयें।
इस तरह आरोग्य-दान करने में तुलसी बहुत ही महत्वपूर्ण है। हमें चाहिए कि जगह-जगह तुलसी के पौधे लगाकर तथा तुलसी के बीज डालकर तुलसी का वृंदावन बनाए। वातावरण को शुद्ध पवित्र कर स्वस्थ करें तथा स्वस्थ रहें।